मेरा वो मकान रोज़ कई सवाल करता है!

कुछ दिन हुए मुझे सपने में मेरा वो मकान दिखाई दिया,जिसमें कभी मेने वो बचपन गुज़ारा था।

जिसका जिकरा मेने शायद आज तक किसे से नहीं किया।

उस मकान की ऊपर वाली मंज़िल पर अब कोई नहीं रहता ।                      

माँ से बात हुई तो बोली अब मुझमें ताक़त नहीं की में इन सीढ़ियों को रोज़ रोज़ नापु। 

तुम तो यहाँ आओगे नहीं? और तुम्हारे पापा के जाने बाद यह कमरे मुझे कुछ अजनबी से लगते है।             

उस अलमारी में वो सब रखा है जिसको छूती हो, तो लगता है वो यही कही है बस दिखायी नहीं आ रहे। तेरे पिताजी बहुत कंफूजन करते थे। 

मेरे साथ साथ इन कमरों को भी कन्फ़्यूज़ होने की आदत हो गयी है,

इसलिए शायद सवाल करते है ।।

 
ऊपर दो नए कमरे तब बनाए थे जब में शायद कॉलेज में था।                     और मेरे अरमान आसमान पे थे।
उस वक़्त अपने वतन में नए नए बाथरूम बनाए जा रहे थे ,
छोटी बहन की ज़िद के पीछे हमने भी एक tub लगवा लिया ।
बिना सोचे की नहाने के किए पानी की भी ज़रूरत होती है ।
और उस वक़्त शायद एक वक़्त ही पानी आता था।
 
 
मुझे वो बाल्कनी भी नज़र आयी जिसमें आधी रात को छुप छुप कर सिगरेट पिया करता था।।
डर डर के कश खेचना और हर पल यह सोचना की किसी ने देखा तो नहीं शायद।
वो आदत तो अब नहीं रही मगर उस छत की उन मुँडेरों पे वह दाग़ अब भी ज़िंदा है जहाँ जहाँ उन्हें भुजाया था।।
 
 
वो छोटा कमरा भी नज़र आया जिसमें कूलर चलता था।
वो गर्मियों में सबसे ज़्यादा ठंडा हो जाता था।
और घर के सब लोग उसमें ताश खेला करते थे।
शायद वह कूलर अब उस छोटे कमरे में किसी कोने में रखा है।
और किसी के काम नहीं आता।
 
 
मुझे यह कमरा हाई स्कूल में मिला था, यह वही कमरा था।।
जिसमें मेने ना जाने कितनी फ़ैंटसीज़ देखी और रोक स्टार के पोस्टर्ज़ के साथ सोया।
उन दिनों रुई के बड़े भारी भारी गद्दे हुआ करते थे
जिनमे से अपने वतन की धूल महकती थी।।
चद्दर उठाने झाड़ने के बहाने उस मिट्टी से खेलते थे
जो साँसो के  साथ अंदर बाहर होती थी।
जो रोमांच उस बिस्तर को ज़मीन पर लगाने में मिलता था
वह अब बेड लगाने में नहीं आता।।
थक हार कर के जब में उस बिस्तर  पर पड़ता था
तो सिर्फ़ सुबह की ताज़ा हवा से ही नींद खुलती थी।
वो रुई के गद्दे बहुत ढूँढे यहाँ मगर कही नज़र नहीं आए ।
 
 
मेने अपने म्यूज़िक के शोक को पूरा करने के लिए बड़े स्पीकर्ज़ ख़रीद लिए थे, और पूरी एक खिड़की को रेक बना दिया था।
जिसमें बड़ी बेतरतीबी से कसेट  जमा दी गयी थी ।
एक निकालता था और दो बिखेरता था।। मिण्टो के गानो में घंटो के मज़े लुटता था।
अब आइफ़ोन है उसमें गाना ढूँढने में वो वक़्त नहीं लगता ।
चंद मिण्टो में बोरियत होने लगती है।।
कौन सी app में जाऊँ इस उधेड बून में कुछ मिनटों का मज़ा भी seconds का बन के रह गया है।।
 
 
वो सीढ़ियाँ जो नीचे से ऊपर तक जाती थी अब रुक गयी है । थम गयी है।।
मेरी माँ मुझे मेरे कमरे का हाल नहीं सुनाती ।
सिर्फ़ पूछती है अब कब इंडिया आओगे यह घर अब खाने को दोड़ता है।।
फ़ेसटाइम पर कॉल होती है तो आँखे सिर्फ़ इतना पूछती है इस घर का में क्या करूँ?
यह रोज़ कई सवाल करता है । यह रोज़ कई सवाल करता है।।

Hindi poetry

Kunal Jain View All →

Made in India, Serving Humanity, Living in Safety Harbor Florida, USA. Healthcare Entrepreneur. Author ”A Philanthropist Without Money” Driven by an inherent desire for knowledge and creative thinking, I harnessed my “Mid Life” energies to becoming a student again, challenging myself to take an executive course in ‘Global Healthcare Innovation’ from Harvard Business School and a Master’s degree in Entrepreneurship from the University of South Florida. Not satisfied with personal success alone, now I’m on a mission to help other aspiring entrepreneurs through mentoring, nurturing, raising funding, and connecting people with more possibilities.

3 Comments Leave a comment

Leave a comment

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.